नमस्कार दोस्तों किताबें हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और आज हम एक पुस्तक की आत्मकथा इस विषय पर हिंदी निबंध लाए है, यह आत्मकथा आप जरूर पढ़िए।
पुस्तक की आत्मकथा।
मुझे किताबें पढ़ना बहुत पसंद है इसीलिए मेरे पास अलग-अलग प्रकार की बहुत सारी किताबें है। यह किताबे मैं अक्सर पढ़ता रहता हूं।
मेरे पुस्तक घर में यहां वहां बिखरे पड़े रहते है इसीलिए मेरी मां अक्सर मुझे डांट लगाती रहती है और मेरी किताबों को एक जगह पर ठीक से रखने के लिए कहती रहती है। इसलिए एक दिन मैंने अपनी सारी पुस्तकें ठीक से साफ करके उन्हें एक जगह रखने का फेसला लिया।
मेने मेरी सारी पुस्तकें इकट्ठा कर ली और उन्हें साफ करके एक-एक करके रखने लगा तभी मेरे हाथ में मेरा एक मन पसंदीदा पुस्तक लगा। पर उस पुस्तक की हालत काफी खराब हो गई थी उसके सारे पन्ने निकलने लगे थे। मैं जैसे ही वह पुस्तक ठीक करने लगा तभी मुझे ऐसा लगा जैसे उस पुस्तक के पन्ने फड़फड़ा कर मुझसे कुछ बोलना चाहते है।
मैं ध्यान देकर सुनने लगा कि वह पुस्तक क्या कहना चाहता है। तभी मुझे पता चला कि वह पुस्तक मेरे से काफी नाराज था, क्योंकि मेरे वजह से उसकी हालत काफी बुरी हो गई थी। फिर वह पुस्तक अपने बारे में बताना लगा।
मेरा जन्मा एक कारखाने में हुआ जहां मेरे पन्नों पर महान भारतीयों का इतिहास लिखा गया जिसका मुझे काफी अभिमान था। और इस वजह से मुझे काफी खुशी हो रही थी।
उस कारखाने में से मुझे सीधे एक पुस्तकालय में भेज दिया गया वहां जाने पर मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरे पन्नों पर छपा हुआ इतिहास पढ़ने के लिए लोग मेरे पास दौड़े चले आएंगे, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। लोगों को मेरे पन्नों मैं छुपे हुए रोमांचक इतिहास में कोई भी दिलचस्पी नहीं थी। फिर क्या मैं उसी पुस्तकालय में धूल खाते हुए पड़ी रही, और इंतजार करने लगी कब कौन आएगा और मेरा उपयोग करेगा।
फिर जब मुझे लगने लगा कि, किसी को भी मेरे इतिहास में दिलचस्पी नहीं है तभी उस पुस्तकालय में तुम मुझे ढूंढते हुए आए तभी मुझे बहुत खुशी हुई थी। तुम मुझे घर लेकर आए और मेरे पन्नों पर छपा हुआ इतिहास आनंद लेकर पढ़ने लगे।
फिर तुम मुझे फिर से उस पुस्तकालय में लेकर चले गए मुझे तभी लगा कि मुझे फिर से उस पुस्तकालय में धूल में पड़े रहना होगा, पर ऐसा नहीं हुआ तुम मुझे उस पुस्तकालय से हमेशा के लिए अपने घर ले आए। मुझे उस दिन बहुत आनंद हुआ था क्योंकि मुझे अच्छा मालिक मिल गया था जो कि मेरा सही मूल्य जनता था।
मुझे तुमने कुछ दिन तक रोज मन लगाकर पड़ा और फिर तुम मुझे एक टेबल पर रखकर भूल गए जहां मेरे ऊपर पानी गिर गया और मैं पूरी तरीके से भीग गई, तुम्हारा मुझ पर ध्यान भी नहीं गया। तभी तुम्हारी मां ने साफ सफाई करते समय मुझे अलमारी के ऊपर रख दिया। तब से आज तक मैं वही थी जहां धूल में पड़े-पड़े मेरा यह हाल हो गया है।
मुझे बहुत बुरा लग रहा था इतने दिन वहां पड़े-पड़े मेरे सारे पन्ने निकलने लगे थे मुझे लग रहा था यह मेरा अंत होगा पर आज तुमने मुझे बचा लिया। पुस्तक को एक गुरु के समान माना जाता है इसीलिए तो कहते है ग्रंथ ही गुरु है। तुम तुम्हारे गुरु का कितना सम्मान करते हो फिर हमारा क्यों नहीं। हमारे साथ ऐसा दुर्व्यवहार मत किया करो हमें भी भावनाएं होती है।
तभी हवाई और किताब के पन्ने फड़फड़ाए तभी मैंने नीचे कर लिया कि आज से मैं मेरे सभी पुस्तकों का ठीक से ख्याल रखूंगा।
समाप्त।
दोस्तों क्या आपको किताबें पढ़ना पसंद है ? आपकी पसंदीदा किताब कौन सी है हमें नीचे comment करके जरूर बताइए।
पुस्तक की आत्मकथा यह हिंदी निबंध class १,२,३,४,५,६,७,८,९ और १०वि के बच्चे अपने पढ़ाई के लिए इस्तेमाल कर सकते है। यह निबंध नीचे दिए गए विषयों पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
- फटी किताब की आत्मकथा।
- एक किताब की आत्मकथा।
- पुस्तक का मनोगत।
तो दोस्तों आपको यह हिंदी निबंध कैसा लगा और अगर आपको कोई और विषय पर हिंदी निबंध चाहिए तो हमें नीचे comment करके बताइए।
धन्यवाद।
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